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Sunday, February 2, 2020

बेखयाली में भी तेरा ही खयाल आए!! Kabir singh


बेखयाली में भी तेरा ही खयाल आये।।।
" क्यूँ बिछड़ना है ज़रूरी ????" ये सवाल आए ।।।
तेरी नज़दीकियों की ख़ुशी बेहिसाब थी 
हिस्से में फ़ासले भी तेरे बेमिसाल आए 
मैं जो तुमसे दूर हूँ , क्यूँ दूर मैं रहूँ. ? ???? 
तेरा गुरुर हूँ 

आ तू फ़ासला मिटा , तू ख्वाब सा मिला 
क्यूँ ख्वाब तोड़ दूँ ? 
बेखयाली में भी तेरा ही खयाल आए 
" क्यूँ जुदाई दे गया तू. ?????" ये सवाल आए 
थोड़ा सा मैं खफ़ा हो गया अपने आप से 
थोड़ा सा तुझपे भी बेवजह ही मलाल आए 

है ये तड़पन , है ये उलझन 
कैसे जी लूँ बिना तेरे. ????? 
मेरी अब सब से है अनबन 
बनते क्यूँ ये खुदा मेरे. ????? 
ये जो लोग - बाग हैं , जंगल की आग हैं 
क्यूँ आग में जलूँ ? 

ये नाकाम प्यार में , खुश हैं ये हार में 
इन जैसा क्यूँ बनूँ. ????? 
रातें देंगी बता , नीदों में तेरी ही बात है 
भूलूँ कैसे तुझे ? तू तो ख्यालों में साथ है 

बेखयाली में भी तेरा ही खयाल आए 
" क्यूँ बिछड़ना है ज़रूरी. ?????" ये सवाल आए … 



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